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एक लड़की का पहला पत्र और एक सवाल भी

kalam se
kalam se
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प्रिये पुरुष ,
तुम अद्भुत हो, तुम स्त्रोत हो,तुमने इस संसार को बहुत कुछ दिया है और दे रहे हो, तुम्हारे नवोन्मेष द्वारा जिंदगी कितनी आसान हो गई है तुम्हारा समर्पण हमे गर्वित करता है! एक पिता होकर हमे राजकुमारी महसूस कराते हो, एक भाई होते हो तो हमारे साथ खुशियाँ, प्यार, सहयोग बांटते हो, तुम मित्र होकर हमे विस्वास करने की शक्ति देते हो और तुम हमे विशेष महसूस कराते हो, तुम्हारी राय, तुम्हारा साथ हमे मजबूत बनता है और भी बहुत कुछ जो सराहने योग्य है
लेकिन मैं उस को सम्बोथित करते हुए कुछ कहना चाहती हु, असल में बताना चाहती हु जो स्वीकार्य नहीं है जो बर्दास्त के काबिल नहीं है;

मैं मानती हु तुम्हारी यौन इच्छाएं हैं और इसमें कुछ गलत नहीं है वो स्त्रीयो में भी होती हैं तुम बड़े हो रहे हो पोर्न देखते हो, हमारी शारीरिक बनाबट की तरफ आकर्षित हो रहे हो , तुम एक ऐसे दौर में हो जहाँ यौन इच्छाएं तीव्र होती हैं और ये एक प्रकार्तिक बदलाव है परन्तु क्या ये सही तरीका है जो तुम अपना रहे हो इन इच्छाओ के वसीभूत होकर , क्या ये समाज के और आने वाली नस्ल के लिए एक सही सन्देश है, तुम्हारी छेड़छाड़ , तुम्हारे अनुचित कार्य, भद्दी टिप्पिडिया, हमारे शरीर को आते जाते छूना, बलात्कार, कभी बस में, कभी ऑटो में, कभी राह चलते और कभी घर में ही, ये तुम्हारा कौन सा रूप है ?
क्या तुम्हे पता है मैं रास्ता बदल देती हु कई बार आने जाने का, तुम्हारी टिप्पड़ियो से बचने कइ लिए , क्या तुम्हे पता है कई बार में सुनकर अनजान बन जाती हु, मैं अपने कपड़ो का चयन संभल क्र करने लगी हु , मैं तैयार होने से डरती हूँ, जिनसे मैं खुल कर बात करती थी अब संभल गई , क्या तुम जानते हो मेरा व्यबहार तुम्हारी इन हरकतों से बदल गया है, मैं खुल कर हंस भी नहीं पाती हूँ सामाजिक जगहों पर , मैं स्कूल में प्रश्न नहीं कर पाती क्युकी तुम्हारी नज़रे किसी एक्सरे से भी तेज़ होती हैं, तुम्हे इकट्ठा देख कर कई बार मेरा चेहरा अपने आप गंभीर हो जाता है क्या तुम्हे पता है ?
क्या मुझे इस समाज में खुल कर जीने का हक़ नहीं है तुम्हारी तरह ? महज इसलिए की मेरे शरीर की बनावट तुमसे अलग है या इसलिए कि तुम शारीरक रूप से मुझ से ज्यादा ताकतवर हो ?

क्या मुझे जबाब पाने का हक़ है अगर दे पाओ तो
पहला पत्र इसलिए कि कुछ और भी जो मैं कहना चाहती हूँ ………..
इंतज़ार में ——

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